हिंदू पंचांग के अनुसार, जब सूर्य वृश्चिक राशि से धनु राशि में प्रवेश करते हैं तो उसे धनु संक्रांति कहते हैं। यह संक्रांति विशेष रूप से भगवान सूर्य और भगवान विष्णु की उपासना के लिए महत्वपूर्ण मानी जाती है। माना जाता है कि इस दिन पूजा-पाठ, स्नान और दान करने से पापों का नाश होता है और पुण्य की प्राप्ति होती है।
धनु संक्रांति दक्षिण भारत और पूर्वी भारत में खास महत्व रखती है। इसे धनु मास की शुरुआत भी कहा जाता है। इस मास में मंदिरों में विशेष अनुष्ठान किए जाते हैं और श्रद्धालु भगवान विष्णु की आराधना करते हैं।
धार्मिक कार्य और परंपराएँ
- प्रातःकाल स्नान करके सूर्य देव को अर्घ्य अर्पित करें।
- भगवान विष्णु की पूजा करें और तुलसी के पौधे पर दीप जलाएँ।
- गरीबों और ब्राह्मणों को अन्न, वस्त्र और दक्षिणा दान करें।
- पवित्र नदियों में स्नान का विशेष महत्व है।
ज्योतिषीय महत्व
धनु राशि में सूर्य का प्रवेश धर्म, अध्यात्म और न्यायप्रियता को बल देता है। यह अवधि गुरु ग्रह के प्रभाव से जुड़ी होती है और व्यक्ति की आस्था तथा धार्मिकता को मजबूत बनाती है। धनु संक्रांति धार्मिक और ज्योतिषीय दोनों दृष्टियों से महत्वपूर्ण पर्व है। इस दिन किए गए दान और पूजा व्यक्ति के जीवन को सुख-समृद्धि और धार्मिक शक्ति प्रदान करते हैं।आगामी संक्रांति की तिथियाँ
- 16 नवंबर 2025, रविवर वृश्चिक संक्रांति
- 16 दिसंबर 2025, मंगलावर धनु संक्रांति
- 14 जनवरी 2026, बुधवार मकर संक्रांति