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छठ पूजा : सूर्य देव की पूजा का महत्व, अनुष्ठान और महत्व

छठ पूजा : सूर्य देव की पूजा का महत्व, अनुष्ठान और महत्व
November 7, 2024, Thursday, को कार्तिक, शुक्ल षष्ठी तिथि को छठ पूजा है।
छठ पूजा एक प्रमुख हिंदू पर्व है, जो विशेष रूप से उत्तर भारत में, विशेषकर बिहार, उत्तर प्रदेश और झारखंड में बड़ी श्रद्धा और आस्था के साथ मनाया जाता है। यह पर्व सूर्य देव और छठी मइया की उपासना के लिए समर्पित है। छठ पूजा कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाई जाती है और इस पर्व में चार दिनों का व्रत रखा जाता है।

छठ पूजा की विधि

छठ पूजा के दौरान व्रत रखने वाले श्रद्धालु पूरी शुद्धता और आत्म-नियंत्रण के साथ सूर्य देव की आराधना करते हैं। इस व्रत में पानी में खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। व्रत में मुख्य रूप से संध्या अर्घ्य (शाम के समय) और उषा अर्घ्य (सूर्योदय के समय) का महत्व होता है। इस व्रत के दौरान विशेष प्रसाद बनाए जाते हैं, जैसे ठेकुआ, कसार, और चावल का प्रसाद, जिन्हें बांस की टोकरी में रखा जाता है।

छठ पूजा का महत्व

छठ पूजा का महत्व यह है कि यह पर्व सूर्य की ऊर्जा और प्रकृति से जुड़े हमारे जीवन को और अधिक ऊर्जा व सकारात्मकता प्रदान करता है। इस दिन लोग अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति और परिवार की खुशहाली के लिए सूर्य देव और छठी मइया की पूजा करते हैं।

छठ पूजा में विशेष नियम और सावधानियां

छठ पूजा में श्रद्धालुओं को कुछ विशेष नियमों और अनुशासनों का पालन करना होता है, जो इस व्रत को अत्यधिक कठिन और पवित्र बनाते हैं। यहाँ छठ

पूजा के प्रमुख नियम दिए गए हैं

सात्विक भोजन:
छठ पूजा के दौरान व्रत करने वाले व्यक्ति को सात्विक और शुद्ध भोजन का सेवन करना होता है। प्याज, लहसुन, मांस-मछली जैसे तामसिक भोजन का सेवन पूरी तरह से वर्जित होता है।
पूर्ण स्वच्छता और पवित्रता:
पूजा में संलग्न सभी सामग्री, घर, और व्रत करने वाले का शरीर पूरी तरह से स्वच्छ और पवित्र रहना चाहिए। व्रती को नहाने के बाद ही भोजन और प्रसाद को छूना चाहिए।
चौबीस घंटे का निर्जला व्रत:
छठ पूजा के तीसरे दिन, श्रद्धालु को चौबीस घंटे का निर्जला व्रत (बिना पानी और अन्न के) रखना होता है। यह व्रत संध्या अर्घ्य से शुरू होकर अगले दिन उगते सूर्य को अर्घ्य देने तक चलता है।
खरना:
छठ पूजा के दूसरे दिन की शाम को 'खरना' मनाया जाता है। इस दिन व्रती द्वारा गुड़ और चावल से बने खीर और रोटी का प्रसाद ग्रहण किया जाता है। इसके बाद व्रती निर्जल व्रत शुरू करता है।
नदी या तालाब में अर्घ्य:
छठ पूजा के दौरान संध्या और उषा अर्घ्य को नदी, तालाब, या किसी साफ पानी के स्त्रोत में जाकर दिया जाता है। यह परंपरा अत्यंत महत्वपूर्ण मानी जाती है।
बांस की टोकरी का उपयोग:
छठ पूजा में प्रसाद को बांस की टोकरी में रखा जाता है। इस टोकरी में ठेकुआ, कसार, और अन्य प्रसाद रखे जाते हैं, और इसे घाट पर ले जाया जाता है।
पूजा की सामग्रियों को छूने से परहेज:
छठ पूजा के दौरान प्रसाद और पूजा की सामग्रियों को केवल व्रत करने वाले ही छू सकते हैं। इन्हें बाहरी लोगों द्वारा छूना शुभ नहीं माना जाता।
सामाजिक अनुशासन:
व्रत के दौरान संयमित व्यवहार, शुद्ध विचार, और परहेज आवश्यक होते हैं। इस व्रत में अत्यधिक अनुशासन का पालन करना होता है।
मौन रहना:
कई लोग छठ पूजा के दौरान मौन व्रत भी रखते हैं, जिससे मानसिक और आत्मिक शांति प्राप्त होती है। छठ पूजा के इन नियमों का पालन करते हुए श्रद्धालु सूर्य देव और छठी मइया की कृपा प्राप्त करते हैं। इस पर्व में कठिन तपस्या और अनुशासन के माध्यम से अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति की कामना की जाती है।
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