जय वृहस्पति देवा,
ऊँ जय वृहस्पति देवा ।
छिन छिन भोग लगाऊँ,
कदली फल मेवा ॥
ऊँ जय वृहस्पति देवा,
जय वृहस्पति देवा ॥
तुम पूरण परमात्मा,
तुम अन्तर्यामी ।
जगतपिता जगदीश्वर,
तुम सबके स्वामी ॥
ऊँ जय वृहस्पति देवा,
जय वृहस्पति देवा ॥
चरणामृत निज निर्मल,
सब पातक हर्ता ।
सकल मनोरथ दायक,
कृपा करो भर्ता ॥
ऊँ जय वृहस्पति देवा,
जय वृहस्पति देवा ॥
तन, मन, धन अर्पण कर,
जो जन शरण पड़े ।
प्रभु प्रकट तब होकर,
आकर द्घार खड़े ॥
ऊँ जय वृहस्पति देवा,
जय वृहस्पति देवा ॥
दीनदयाल दयानिधि,
भक्तन हितकारी ।
पाप दोष सब हर्ता,
भव बंधन हारी ॥
ऊँ जय वृहस्पति देवा,
जय वृहस्पति देवा ॥
सकल मनोरथ दायक,
सब संशय हारो ।
विषय विकार मिटाओ,
संतन सुखकारी ॥
ऊँ जय वृहस्पति देवा,
जय वृहस्पति देवा ॥
जो कोई आरती तेरी,
प्रेम सहित गावे ।
जेठानन्द आनन्दकर,
सो निश्चय पावे ॥
ऊँ जय वृहस्पति देवा,
जय वृहस्पति देवा ॥
सब बोलो विष्णु भगवान की जय ।
बोलो वृहस्पतिदेव भगवान की जय ॥
बृहस्पति देव: ज्ञान और बुद्धि के कारक ग्रह
बृहस्पति देव को हिंदू धर्म में देवताओं के गुरु और ज्ञान, विद्या, धर्म एवं सदाचार के प्रतीक के रूप में पूजा जाता है। वे नवग्रहों में सबसे शुभ ग्रह माने जाते हैं और इन्हें गुरु, बृहस्पति या देवगुरु के नाम से भी जाना जाता है। बृहस्पति देव को भगवान विष्णु का अंश माना जाता है, जो व्यक्ति के जीवन में ज्ञान, समृद्धि और सकारात्मकता लाने का कार्य करते हैं।
ज्योतिष शास्त्र में, बृहस्पति को बुद्धिमत्ता, शिक्षा, संतान सुख, धन और आध्यात्मिक उन्नति का कारक माना जाता है। जिनकी कुंडली में बृहस्पति शुभ स्थिति में होता है, वे व्यक्ति धार्मिक, विद्वान और समाज में सम्मानित होते हैं। बृहस्पति देव का दिन गुरुवार होता है, और इस दिन व्रत, पूजा और पीले वस्त्र धारण करना शुभ माना जाता है।
पुराणों के अनुसार, बृहस्पति देव देवताओं के मार्गदर्शक हैं और उन्होंने अनेक बार असुरों के षड्यंत्रों से देवताओं की रक्षा की है। उनकी कृपा प्राप्त करने के लिए गुरुवार व्रत, पीले फूल और चने की दाल का दान करना लाभकारी माना जाता है। वे व्यक्ति के जीवन में सफलता, समृद्धि और शुभता लाते हैं।
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